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Friday, 1 July 2011

सुख का दरवाज़ा

सुख का दरवाज़ा खुला है,
ग़म प्रतिक्षा कर रहा है।

सूर्ख हैं फूलों के चेहरे,
रंग काटों का हरा है।

रात की बाहों मेंअब तक,
दिन का सूरज सो रहा है।

जीतना है झूठ को गर,
सच से रिश्ता क्यूं रखा है।

इश्क़ के जंगल में फिर इक,
दिल का राही फंस चुका है।

बन्दगी उनकी हवस की,
सब्र क्यूं मेरा ख़ुदा है।

जब सियासत बहरों की ,क्यूं
तोपों का माथा चढा है।

बच्चों की ख़ुशियों के खातिर,
बाप को मरना पड़ा है।

इश्क़ के सीने पे अब भी,
हुस्न का जूता रखा है।

मुल्क में पैसा तो है पर,
हिर्स का ताला लगा है। ( हिर्स-- लालच)

ज़ुल्म के दरिया से दानी,
दीन का साहिल बड़ा है।

5 comments:

  1. सूर्ख हैं फूलों के चेहरे,
    रंग काटों का हरा है।
    रात की बाहों मेंअब तक,
    दिन का सूरज सो रहा है।

    बहुत खूब...

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  2. जीतना है झूठ को गर,
    सच से रिश्ता क्यूं रखा है।

    संजय भाई ,बेहतरीन शेरों को पढ़ के आज का संडे सफल हो गया.

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  3. छोटी बहार में लिखी इस लाजवाब गज़ल के लिए संजय जी ... बहुत बधाई ... कमाल के शेर लिखे हैं ...

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