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Friday 19 August 2011

जंगा का मिजान

हर जंग का मिज़ान है हिम्मत ओ हौसला,
पर इश्क़ के मकान में ताक़त का काम क्या।

आवार घूमता है विरह की गली में चांद,
फिर बादलों का चांदनी पर जादू चल गया।

मंज़ूर है चरागे-जिगर को शरारे ग़म,
महफ़िल-ए-हुस्न जलवा दिखाये तो मरहबा।

पतझड़ भरे खेतों में कल आयेगी बहार,
हर ज़िन्दगी के साथ है सुख दुख का सिलसिला।

हमको मिला ग़रीबी का दानव तमाम उम्र,
गोया अमीरों की ही इबादत सुने ख़ुदा।

मां गांव में अकेले ही मर ख़फ़ गई मगर,
मैं बज़्मे-शह्र से कभी भी ना निकल सका।

जलते रहा वफ़ा के शरारों में मेरा दिल,
मेरे जनाज़े में भी न ,पर आई बेवफ़ा।

वो नीमकश निगाहें वो दिलकश अदायें हाय,
उस बेरहम को कैसे दूं मर के भी बद्दुआ।

मझधारे-शौक़ को हरा कर दानी आया है,
पर सब्र के किनारों को मुश्किल है जीतना।

Thursday 11 August 2011

आशिक़ का जिगर

सावन की घटाओं से तुम काली चुनर लेना,
औ ,बिजलियों से पागल आशिक का जिगर लेना।

जब दिल के समन्दर को हो इच्छा मिलन की तो,
तुम ग़मज़दा हर साहिल को तोड़, सफ़र लेना।

गर मन के पहाड़ों पर सैलाबे-हवस छाये,
तो सब्रो-वफ़ा से दिल की धरती को भर लेना।

जब चांदनी बन छाओ तुम शौक़ की गलियों में,
फ़ुटपाथी क़मर से धोखेबाज़ी का ज़र लेना।

जब दिल में मुसाफ़त का तूफ़ान उठे हमदम, ( मुसाफ़त--यात्रा)
तुम बादलों की दीवानेपन की ख़बर लेना।

गर बाग़े-वफ़ा से पतझड़ की सदा आये तो,
सरहद की फ़िज़ाओं से कुर्बानी का ज़र लेना।

धरती की हवा हो जाये सुर्ख, विरह से गर,
तो सूर्य से तुम गर्मी सहने का हुनर लेना।

गर प्यार में घायल कुछ चिड़ियों की करो सेवा,
तो उनसे तलाशे-साजन, ताक़ते-पर लेना।

दुख दर्द चरागे-दिल का जानते हो दानी,
नादान हवा-ए-मज़हब से, न शरर लेना।

Saturday 6 August 2011

विरह की आग

मुझसे सावन की घटा ,ये कह रही है,
क्यूं विरह की आग तेरे दर खड़ी है।

ऐसे मौसम में ख़फ़ा क्यूं तुझसे साजन ,
तेरे ही श्रृंगार में शायद कमी है।

कुछ अदा-ए-हुस्न का परचम तो फ़हरा,
तुझको यौवन की इनायत तो मिली है।

भीख मांगेगा रहम की,तुझसे वो, तू
हुस्न की जंज़ीर ढीली क्यूं रखी है।

बांध कर क्यूं रखते हो ज़ुल्फ़ों को अपनी,
इसके साये में हया भी बोलती है।

नथनी ,बिछिया , पैरों में माहुर कहां हैं,
सब्र की बुनियाद इनसे ही ढही है।

नीमकश नज़रों से बर्छी तो चलाओ,
सैकड़ों कुरबानी इसने ही तो ली है।

चूड़ियों को हौले से खनका तो दे , फिर
देखें कितनी पाक साजन की ख़ुदी है।

फिर सुना, झन्कार अपने पायलों की,
साधुओं की भी इन्हीं से दुश्मनी है।

सुर्ख साड़ी की ज़मानत क्यूं न लेती,
ये मुहब्बत की अदालत की सखी है।

तेरा साजन दौड़ कर आयेगा दानी,
वो कोई ईश्वर नहीं इक आदमी है।