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Saturday, 9 July 2011

मुहब्बत की कहानी

मुहब्बत तेरी मेरी कहानी के सिवा क्या है,
विरह के धूप में तपती जवानी के सिवा क्या है।

तुम्हारी दीद की उम्मीद में बैठा हूं तेरे दर,
तुम्हारे झूठे वादों की गुलामी के सिवा क्या है।

समन्दर ने किनारों की ज़मानत बेवजह क्यूं ली,
इबादत-ए-बला आसमानी के सिवा क्या है।

तेरी ज़ुल्फ़ों के गुलशन में गुले-दिल पीला पड़ जाता,
तेरे मन में सितम की बाग़वानी के सिवा क्या है।

पतंगे-दिल को कोई थामने वाला मिले ना तो,
थकी हारी हवाओं की रवानी के सिवा क्या है।

न इतराओ ज़मीने ज़िन्दगी की इस बुलन्दी पर,
हक़ीक़त में तेरी फ़स्लें ,लगानी के सिवा क्या है।

शिकम का तर्क देकर बैठा है परदेश में हमदम,
विदेशों में हवस की पासबानी के सिवा क्या है।

ग़रीबों के सिसकते आंसुओं का मोल दानी अब,
अमीरों के लिय आंखों के पानी के सिवा क्याहै।

5 comments:

  1. bilkul hi naye bimb lekar ashaar likhe hai.sanjay bhai,kya baat hai

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  2. तुम्हारी दीद की उम्मीद में बैठा हूं तेरे दर,
    तुम्हारे झूठे वादों की गुलामी के सिवा क्या है।
    समन्दर ने किनारों की ज़मानत बेवजह क्यूं ली,
    इबादत-ए-बला आसमानी के सिवा क्या है।

    बहुत ही खूबसूरत अशआर...खूबसूरत ग़ज़ल....

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  3. .


    अपनी ज़ुल्फ़ों को न लहराया करो,
    बादलों का कारवां धबराता है....

    Aah !...Beautiful imagination !

    Your writing talent fascinate me .

    .

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