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Friday, 15 July 2011

चांदनी का दरवाज़ा।

चांदनी का बंद क्यूं दरवाज़ा है,
चांद आखिर किस वतन का राजा है।

अपनी ज़ुल्फ़ों को न लहराया करो,
बादलों का कारवां धबराता है।

नेकी की बाहों में रातें कटती हैं ,
सुबह फिर दर्दे बदी छा जाता है।

मोल पानी का न जाने शहरे हुस्न,
मेरे दिल का गांव अब भी प्यासा है।

घर के अंदर रिश्तों का बाज़ार है,
पैसा ही मां बाप जीजा साला है।

फ़र्ज़ की पगडंडियां टेढी हुईं,
धोखे का दालान सीधा साधा है।

क्यूं प्रतीक्षा की नदी में डूबूं मैं,
जब किनारों का अभी का वादा है।

मैं पुजारी ,तू ख़ुदा-ए- हुस्न है,
ऊंचा किसका इस जहां में दर्ज़ा है।

पी रहां हूं सब्र का दानी शराब,
अब हवस का दरिया बिल्कुल तन्हा है।

8 comments:

  1. मोल पानी का न जाने शहरे हुस्न,
    मेरे दिल का गांव अब भी प्यासा है।

    बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.......शानदार |

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  2. चांदनी का बंद क्यूं दरवाज़ा है,
    चांद आखिर किस वतन का राजा है।

    खूबसूरत ग़ज़ल का खूबसूरत मतला।
    हर शेर काबिले-तारीफ है।

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  3. शुक्रिया महेन्द्र वर्मा जी।

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  4. घर के अंदर रिश्तों का बाज़ार है,
    पैसा ही मां बाप जीजा साला है।

    सुंदर गज़ल.हर शेर खूबसूरत.

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  5. .

    मैं पुजारी ,तू ख़ुदा-ए- हुस्न है,
    ऊंचा किसका इस जहां में दर्ज़ा है।


    Above couplet is full of devotion and commitment

    Awesome !

    .

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  6. दिव्या जी का आभार।

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