मेरी तेरी जब से कुछ पहचान है,
मुश्किलों में तब से मेरी जान है।
प्यार का इज़हार करना चाहूं पर,
डर का चाबुक सांसों का दरबान है।
इश्क़ में दरवेशी का कासा धरे,
बेसबब चलने का वरदान है।
जब से तेरै ज़ुल्फ़ों की खम देखी है,
तब से सांसत मे मेरा ईमान है।
मत झुकाओ नीमकश आखों को और,
और कुछ दिन जीने का अरमान है।
ज़िन्दगी भर ईद की ईदी तुझे,
मेरे हक़ में उम्र भर रमजान है।
सब्र की पगडदियां मेरे लिये,
तू हवस के खेल की मैदान है।
मेरे दिल के कमरे अक्सर रोते हैं,
तू वफ़ा की छत से क्यूं अन्जान है।
तेरे बिन जीना सज़ा से कम नहीं,
मरना भी दानी कहां आसान है।
मत झुकाओ नीमकश आखों को और,
ReplyDeleteऔर कुछ दिन जीने का अरमान है।
बारिश के मौसम में रुमानी शेर ने मौसम को और भी ह्सीन बना दिया.
बशुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteअरूण भाई व पटाली जी का आभार।
ReplyDeleteतेरे बिन जीना सज़ा से कम नहीं,
ReplyDeleteमरना भी दानी कहां आसान है।
बहुत बढ़िया....
Thanks Veena ji.
ReplyDeleteजब से तेरै ज़ुल्फ़ों की खम देखी है,
ReplyDeleteतब से सांसत मे मेरा ईमान है।
बेहतरीन है भाई साहब ...सब की एक ही हालत है
धन्यवाद बबन पान्डेय जी।
ReplyDeleteज़िन्दगी भर ईद की ईदी तुझे,
ReplyDeleteमेरे हक़ में उम्र भार रमजान है।
ये शेर तो गजब का है.
वाह!क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है.
उम्र भार को
ReplyDeleteकृपया सुधार कर यह कर लें......
उम्र भर रमजान है।
धन्यवाद वर्षा जी।
ReplyDeleteमत झुकाओ नीमकश आखों को और,
ReplyDeleteऔर कुछ दिन जीने का अरमान है।
बहुत सुंदर रचना है
मेरी तेरी जब से कुछ पहचान है,
ReplyDeleteमुश्किलों में तब से मेरी जान है।
bahut umda
महेन्द्र श्रीवास्तव जी और अमरेन्द्र जी का शुक्रिया।
ReplyDeleteमत झुकाओ नीम -कश आँखों को और ,
ReplyDeleteऔर कुछ दिन जीने का अरमान है .बहुत खूब हरेक शैर नोट करने लायक ,गुनगुनाने लायक .
वीरू भाई को धन्यवाद्।
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