नये साल में नया गुल खिले नई हो महक नया रंग हो,
फ़िज़ा-ए-वतन में ख़ुलूस की सदा हो अदब की तरंग हो।
कहां तक अकेले चलोगे इश्क़ के सर्द, दश्ते-बियाबां में,
मेरा साया, गर न अजीज़ हो तो मेरी दुआयें तो संग हो।
ये लड़ाई सरहदों की,तबाह करेगी हमको भी तुमको भी,
तुम्हें शौक़े- जंग हो तो ग़ुनाहों के सरपरस्तों से जंग हो।
मैं चरागे आशिक़ी को बुलंद रखूंगा मरते तलक सनम,
भले आंधियां तेरे ज़ुल्मी हुस्न की,बे-शहूर मतंग हो।
ये जवानी की हवा चार दिन ही रहेगी, आसमां पे न उड़
सुकूं से बुढापा बिताने , हाथों पे सब्र की ही पतंग हो।
वफ़ा के मकान की कुर्सियां पे लगी हों कीलें भरोसों की,
दिलों के मुहल्ले में ग़ैरों के लिये भी मदद की पलंग हो।
कहां राज पाठ किसी के साथ लहद में जाता है दोस्तों,
दो दिनों की ज़िन्दगी में हवस के मज़ार जल्द ही भंग हो।
मुझे अपने कारवां के सफ़र से जुदा न करना ऐ महजबीं,
तेरे पैरों की जहां भी हो थाप , वहां मेरा ही म्रिदंग हो।
तेरे आसमां पे मेरा ही हुक्म चलेगा दानी , ये याद रख,
मेरी नेक़ी जीतेगी ही तेरी बदी चाहे कितनी दबंग हो।
Thursday 24 February 2011
Sunday 6 February 2011
पतंगों की जवानी
तू मेरे सूर्ख गुलशन को हरा कर दे ,
ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है ,
मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,
या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर ,
मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ ,
तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।
हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को ,
तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा ,
मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब ,
मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
शहादत पे सियासत हो वतन मे तो ,
शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को ,
यहीं तामीर काशी करबला कर दे।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता,
दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।
अता- देना ,लहद-क़ब्र, तसव्वुर-कल्पना ,फ़लक-गगन।, ज़िया-रौशनी
ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।
हवाओं के सितम से कौन डरता है ,
मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।
या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,
या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।
तसव्वुर में न आने का तू वादा कर ,
मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।
पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ ,
तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।
हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को ,
तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।
मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा ,
मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।
तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब ,
मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।
शहादत पे सियासत हो वतन मे तो ,
शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।
यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को ,
यहीं तामीर काशी करबला कर दे।
भटकना गलियों में मुझको नहीं आता,
दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।
अता- देना ,लहद-क़ब्र, तसव्वुर-कल्पना ,फ़लक-गगन।, ज़िया-रौशनी
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