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Friday 24 June 2011

नीमकश आंखें।

मेरी तेरी जब से कुछ पहचान है,
मुश्किलों में तब से मेरी जान है।

प्यार का इज़हार करना चाहूं पर,
डर का चाबुक सांसों का दरबान है।

इश्क़ में दरवेशी का कासा धरे,
बेसबब चलने का वरदान है।

जब से तेरै ज़ुल्फ़ों की खम देखी है,
तब से सांसत मे मेरा ईमान है।

मत झुकाओ नीमकश आखों को और,
और कुछ दिन जीने का अरमान है।

ज़िन्दगी भर ईद की ईदी तुझे,
मेरे हक़ में उम्र भर रमजान है।

सब्र की पगडदियां मेरे लिये,
तू हवस के खेल की मैदान है।

मेरे दिल के कमरे अक्सर रोते हैं,
तू वफ़ा की छत से क्यूं अन्जान है।

तेरे बिन जीना सज़ा से कम नहीं,
मरना भी दानी कहां आसान है।

15 comments:

  1. मत झुकाओ नीमकश आखों को और,
    और कुछ दिन जीने का अरमान है।

    बारिश के मौसम में रुमानी शेर ने मौसम को और भी ह्सीन बना दिया.

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  2. बशुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  3. अरूण भाई व पटाली जी का आभार।

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  4. तेरे बिन जीना सज़ा से कम नहीं,
    मरना भी दानी कहां आसान है।

    बहुत बढ़िया....

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  5. जब से तेरै ज़ुल्फ़ों की खम देखी है,
    तब से सांसत मे मेरा ईमान है।
    बेहतरीन है भाई साहब ...सब की एक ही हालत है

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  6. धन्यवाद बबन पान्डेय जी।

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  7. ज़िन्दगी भर ईद की ईदी तुझे,
    मेरे हक़ में उम्र भार रमजान है।

    ये शेर तो गजब का है.
    वाह!क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है.

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  8. उम्र भार को

    कृपया सुधार कर यह कर लें......
    उम्र भर रमजान है।

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  9. मत झुकाओ नीमकश आखों को और,
    और कुछ दिन जीने का अरमान है।

    बहुत सुंदर रचना है

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  10. मेरी तेरी जब से कुछ पहचान है,
    मुश्किलों में तब से मेरी जान है।
    bahut umda

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  11. महेन्द्र श्रीवास्तव जी और अमरेन्द्र जी का शुक्रिया।

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  12. मत झुकाओ नीम -कश आँखों को और ,
    और कुछ दिन जीने का अरमान है .बहुत खूब हरेक शैर नोट करने लायक ,गुनगुनाने लायक .

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  13. वीरू भाई को धन्यवाद्।

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