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Sunday 3 April 2011

ग़म के बादल

ख़ुशियों का सूर्य गायब है घर से,
छाये हैं ग़म के बादल उपर से।

आज ख़ुद रात घबराई सी है,
चांदनी भी ख़फ़ा है क़मर से।

दुनिया समझे शराबी मुझे,जब
से मिली आंख़ें तेरी नज़र से।

हार ही जीत की पहली सीढी है,
रुकते हो क्यूं पराजय के डर से।

इस महक को मैं पहचानता हूं,
बेवफ़ा गुज़री होगी इधर से।

रातें कट जाती हैं जैसे तैसे,
डरती हैं मेरी सांसें सहर से।

रोज़ वो किस गली गुल खिलाती,
कुछ पता तो करो रहगुज़र से।

दूर रख दिल पहाड़ों से,बचना
भी कठिन गर गिरोगे शिखर से।

ईद का चांद जब तक दिखे ना
मैं हटूंगा नही दानी दर से।

10 comments:

  1. इस महक को मैं पहचानता हूं,
    बेवफ़ा गुज़री होगी इधर से।

    रातें कट जाती हैं जैसे तैसे,
    डरती हैं मेरी सांसें सहर से।

    बहुत सुन्दर गज़ल..उम्दा शेर

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  2. रातें कट जाती हैं जैसे तैसे,
    डरती हैं मेरी सांसें सहर से..

    Very touching emotions...

    .

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  3. हार ही जीत की पहली सीढी है,
    रुकते हो क्यूं पराजय के डर से।

    बहुत सुन्दर रचना खासकर ये पक्तियां...

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  4. बहुत दिन में आई नई पोस्ट "संजय"
    बाहर गए थे क्या अपने शहर से ?
    अच्छी ग़ज़ल - शेर ,जज्बात अच्छे
    छाये जेहन पे हैं शामोसहर से.

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  5. हार ही जीत की पहली सीढी है,
    रुकते हो क्यूं पराजय के डर से।

    कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......

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  6. कैलाश जी , दिव्या जी संध्या जी , अरूण भाई व वर्षा जी का बहुत बहुत आभार।

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  7. दुनिया समझे शराबी मुझे,जब
    से मिली आंख़ें तेरी नज़र से।

    बहुत ही खूबसूरत!
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  8. अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

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  9. एक एक लाइन कीमती है|उर्दू ने रचना को अलंकृत कर दिया है जनाब- तबियत तर हो गई |
    रोज़ वो किस गली गुल खिलाती
    कुछ पता तो करो रहगुज़र से।
    बहुत बढिया|

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  10. विवेक जैन जी , सारा सच के मुखिया और उमाशंकर जी का आभार।

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