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Sunday, 24 April 2011

ज़िन्दगी यारो नदी है।

तुमको इज़्ज़त की पड़ी है,
मेरी दुनिया लुट रही है।

बेवफ़ाई की गली भी,
हां ख़ुदा द्वारा बनी है।

इश्क़ नेक़ी का मुसाफ़िर,
हुस्न धोखे की गली है।

हम चराग़ों के सिपाही,
आंधियों से दुश्मनी है।

चाह कर भी रुक न सकते,
ज़िन्दगी यारो नदी है।

क्यूं किनारों पर सड़ें जब,
लहरों की दीवानगी है।

तीरगी के इस सफ़र में, (तीरगी - अंधेरों)
जुगनुओं से दोस्ती है।

मेरी दरवेशी पे मत हंस,
अब यही मेरी ख़ुदी है। (ख़ुदी -स्वाभिमान)

चांद के जाते ही दानी,
चांदनी बिकने खड़ी है।

10 comments:

  1. क्यूं किनारों पर सड़ें जब,
    लहरों की दीवानगी है..

    Beautiful and motivating lines.

    .

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  2. दानी की नन्ही ग़ज़ल भी
    इक फ़साने से बड़ी है.
    आग है , बारूद भी है
    हाँ ! मगर ये फुलझड़ी है.
    खुबसूरत ग़ज़ल के लिए मेरी बधाई.
    pl.visit www.gharhare.blogspot.com
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  3. चाह कर भी रुक न सकते,
    ज़िन्दगी यारो नदी है।

    अच्छी सोच ....बहुत ही खूबसूरत अलफ़ाज़.

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  4. इश्क़ नेक़ी का मुसाफ़िर,
    हुस्न धोखे की गली है।.......wah...bahut khoob!

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  5. हम चराग़ों के सिपाही,
    आंधियों से दुश्मनी है।

    बहुत जानदार शेर।
    छोटी बहर में बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।

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  6. तीरगी के इस सफ़र में, )
    जुगनुओं से दोस्ती है।
    kya khoob likha hai
    puri gazal hi bahut sunder hain
    rachana

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  7. आदरणीय महेन्द्र जी और आदरणीया रचना जी का बहुत बहुत आभार।

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