ख़ुशियों का सूर्य गायब है घर से,
छाये हैं ग़म के बादल उपर से।
आज ख़ुद रात घबराई सी है,
चांदनी भी ख़फ़ा है क़मर से।
दुनिया समझे शराबी मुझे,जब
से मिली आंख़ें तेरी नज़र से।
हार ही जीत की पहली सीढी है,
रुकते हो क्यूं पराजय के डर से।
इस महक को मैं पहचानता हूं,
बेवफ़ा गुज़री होगी इधर से।
रातें कट जाती हैं जैसे तैसे,
डरती हैं मेरी सांसें सहर से।
रोज़ वो किस गली गुल खिलाती,
कुछ पता तो करो रहगुज़र से।
दूर रख दिल पहाड़ों से,बचना
भी कठिन गर गिरोगे शिखर से।
ईद का चांद जब तक दिखे ना
मैं हटूंगा नही दानी दर से।
इस महक को मैं पहचानता हूं,
ReplyDeleteबेवफ़ा गुज़री होगी इधर से।
रातें कट जाती हैं जैसे तैसे,
डरती हैं मेरी सांसें सहर से।
बहुत सुन्दर गज़ल..उम्दा शेर
रातें कट जाती हैं जैसे तैसे,
ReplyDeleteडरती हैं मेरी सांसें सहर से..
Very touching emotions...
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हार ही जीत की पहली सीढी है,
ReplyDeleteरुकते हो क्यूं पराजय के डर से।
बहुत सुन्दर रचना खासकर ये पक्तियां...
बहुत दिन में आई नई पोस्ट "संजय"
ReplyDeleteबाहर गए थे क्या अपने शहर से ?
अच्छी ग़ज़ल - शेर ,जज्बात अच्छे
छाये जेहन पे हैं शामोसहर से.
हार ही जीत की पहली सीढी है,
ReplyDeleteरुकते हो क्यूं पराजय के डर से।
कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......
कैलाश जी , दिव्या जी संध्या जी , अरूण भाई व वर्षा जी का बहुत बहुत आभार।
ReplyDeleteदुनिया समझे शराबी मुझे,जब
ReplyDeleteसे मिली आंख़ें तेरी नज़र से।
बहुत ही खूबसूरत!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....
ReplyDeleteएक एक लाइन कीमती है|उर्दू ने रचना को अलंकृत कर दिया है जनाब- तबियत तर हो गई |
ReplyDeleteरोज़ वो किस गली गुल खिलाती
कुछ पता तो करो रहगुज़र से।
बहुत बढिया|
विवेक जैन जी , सारा सच के मुखिया और उमाशंकर जी का आभार।
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