मुझसे तन्हाई मेरी ये पूछती है,
बेवफ़ाओं से तेरी क्यूं दोस्ती है।
चल पड़ा हूं मुहब्बत के सफ़र में,
पैरों पर छाले रगों में बेख़ुदी है।
पानी के व्यापार में पैसा बहुत है,
अब तराजू की गिरह में हर नदी है।
एक तारा टूटा है आसमां पर,
शौक़ की धरती सुकूं से सो रही है।
बिल्डरों के द्वारा संवरेगा नगर अब,
सुन ये, पेड़ों के मुहल्ले में ग़मी है।
अब अंधेरों का मुसाफ़िर चांद भी है,
चांदनी के ज़ुल्फ़ों की आवारगी है।
अब खिलौनों वास्ते बच्चा न रोता,
टीवी के दम से जवानी चढ गई है।
दिल की कश्ती को किनारों ने डुबाया,
इसलिये मंझधार को से मिलने चली है।
मत लगाना हुस्न पर इल्ज़ाम दानी,
ऐसे केसों में गवाहों की कमी है।
खूबसूरत ग़ज़ल.वर्त्तमान सन्दर्भों को क्या खूब रेखांकित किया है.
ReplyDeleteबिल्डरों के द्वारा संवरेगा नगर अब,
सुन ये, पेड़ों के मुहल्ले में ग़मी है।
वाह!!!!!! वाह!!!!!वाह!!!!!!
बिल्डरों के द्वारा संवरेगा नगर अब,
ReplyDeleteसुन ये, पेड़ों के मुहल्ले में ग़मी है।
अब अंधेरों का मुसाफ़िर चांद भी है,
चांदनी के ज़ुल्फ़ों की आवारगी है।
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें ।
many many thanks to Arun Nigama ji , Richa ji and Warsha singh ji
ReplyDeleteचल पड़ा हूं मुहब्बत के सफ़र में,
ReplyDeleteपैरों पर छाले रगों में बेख़ुदी है।
bahut khoob sher .
wah wah
saader
rachana