ग़म की कलम से दर्द की तहरीर लिखता हूं,
मैं जेबे-दिल में मौत की तस्वीर रखता हूं।
ख़त, जुगनुओं के रोज़ मेरे पास आते हैं,
मैं इश्क़ को अंधेरों में तन्वीर देता हूं। ( तन्वीर - रौशनी)
कासे में इस फ़क़ीर के थोड़ा ही दाना दो, ( कासा - कटोरा)
मैं भूख की फ़िज़ाओं की तकलीफ़ सहता हूं।
मक़्तूल का शिकार दरे-हुस्न में हुआ, ( मक़्तूल - जिसका क़त्ल हुआ)
अब क़ातिलों को दुआ के पीर देता हूं।
तैयार हूं मैं जलने को, महफ़िल-ए-शमअ में,
कद, पुरखों का बढाने बग़लगीर रहता हूं। (बग़लगीर- बाजू )
इस दिल के आईने को नशा तेरी ज़ुल्फ़ों का,
मैं बादलों से सब्र की जाग़ीर लेता हूं।
फुटपाथ के भरोसे मुकद्दर है चांद का,
मैं चांदनी के ज़ुल्मों की तस्दीक़ करता हूं। ( तस्दीक-पुष्टि)
गो इश्क़ की नदी में उतर तो गया हूं पर,
मंझधारे-हुस्न को कहां मैं जीत सकता हूं।
दिल का सिपाही, ज़ुल्म सियासत का क्यूं सहे,
मैं सरहदों पे दोस्ती के गीत सुनता हूं।
तुम ही मेरा जनाज़ा निकालोगी दानी जल्द,
तेरी वफ़ा से इतनी तो उम्मीद करता हूं।
ख़त, जुगनुओं का रोज़ मेरे पास आता है,
ReplyDeleteमैं इश्क़ को अंधेरों में तन्वीर देता हूं।
बहुत खूब! हरेक शेर लाज़वाब..
आदरणीय,
ReplyDeleteरचना बेशक बहुत-बहुत उम्दा है.
मुझे बस पढने के रिदम मे इस बार मजा कम आया...वैसे आपके शायरी को "मिस" कर रहा था!
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व्यस्त हूँ इन दिनों-विजिट करें
तेरी वफा से इतनी तो उम्मीद करता हूं. उम्दा गज़ल डाक्टर साहब, धन्यवाद.
ReplyDeleteइस दिल के आईने को नशा तेरी ज़ुल्फ़ों का,
ReplyDeleteमैं बादलों से सब्र की जाग़ीर लेता हूं।
waah ! kya baat !
Excellent creation !
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ख़त, जुगनुओं के रोज़ मेरे पास आते हैं,
ReplyDeleteमैं इश्क़ को अंधेरों में तन्वीर देता हूं।
bahut achchi lagi.
ख़त, जुगनुओं के रोज़ मेरे पास आते हैं,
ReplyDeleteमैं इश्क़ को अंधेरों में तन्वीर देता हूं।
बेहतरीन ग़ज़ल...
ग़ज़ल का हर शेर लाजवाब है ! शुक्रिया !
तैयार हूं मैं जलने को, महफ़िल-ए-शमअ में,
ReplyDeleteकद, पुरखों का बढाने बग़लगीर रहता हूं।
हर शेर खुबसूरत दाद दिए बिना नहीं रह सकते , मुबारक हो
कैलाश शर्मा जी,अमीत जी , संजीव तिवारी जी , विद्या जी , म्रिदुला प्रधान जी, वर्षा जी और सुनील जी आप सबका तहेदिल आभार ।
ReplyDeletevaah....bahut acchhi lagi gazal....!!
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल, हर शेर लाजवाब
ReplyDeleteराजीव जी और अरूण भाई को बहुत बहुत धन्य्वाद।
ReplyDelete'फुटपाथ के भरोसे मुकद्दर है चाँद का
ReplyDeleteमैं चांदनी के जुल्मों की तस्दीक करता हूँ |'
वाह संजय जी !.......उम्दा शेर
बेहतरीन ग़ज़ल|
ReplyDeleteहोली पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ|
मजा आ गया उम्दा गज़ल पढ़ कर|ऐसी गज़ल बहुत दिनों के बाद पढ़ने मिली |
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