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Saturday 15 January 2011

ऐतबार

तुझपे मैं ऐतबार कर रहा हूं,
मुश्किलों से करार कर रहा हूं।

प्यार कर या सितम ढा ग़लती ये
बा-अदब बार बार कर रहा हूं।

जानता हूं तू आयेगी नहीं पर,
सदियों से इन्तज़ार कर रहा हूं।

जब से कुर्बानी का दिखा है चांद,
अपनी सांसों पे वार कर रहा हूं।

हुस्न की ख़ुशियों के लिये, मैं इश्क़
गमों का इख़्तियार कर रहा हूं।

तू ख़िज़ां की मुरीद इसलिये अब,
मैं भी क़त्ले-बहार कर रहा हूं।

दिल से लहरों का डर मिटाने ही,
आज मैं दरिया पार कर रहा हूं।

मेरा जलता रहे चराग़े ग़म,
आंधियों से गुहार कर रहा हूं।

गांव के प्यार में न लगता था ज़र,
शहरे-ग़म में उधार कर रहा हूं।

आशिक़ी के बियाबां में दानी,
ख़ुद ही अपना शिकार कर रहा हूं।

8 comments:

  1. मेरा जलता रहे चराग़े ग़म,
    आंधियों से गुहार कर रहा हूं।

    बहुत सुन्दर..हरेक शेर मर्मस्पर्शी

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  2. वाह!
    एतबार पर
    तुझपे मैं ऐतबार कर रहा हूं,
    मुश्किलों से करार कर रहा हूं।
    इन लाइनों से जादा और क्या सटीक हो सकता है...! बहुत गहरे मे जाके जो मुश्किलात मिलीं वो इन दो लाइनों में बहुत सहजता से बयाँ कर दिया आपने.!
    - वाह - हर एक शे'र पढ़ा...और इस बारगी में बस इतना कहूँगा कि 'कायल कर दिया' वाह!
    इस समय इस रचना को पढ़कर ऐसे अहसास से भर गया हूँ जब आपसे इक़ शब्द भी न निकले-ऐसे अहसास के भराव---
    -
    सागर by AMIT K SAGAR

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  3. .

    संजय जी ,

    एक से बढ़कर एक शेर हैं। बहुत बार पढ़ा, हर बार और भी बेहतरीन लगा

    .

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  4. कैलाश जी , अमीत जी, दिव्या जी और हरमन जी का आभार।

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  5. बहुत सुन्दर..हरेक शेर मर्मस्पर्शी| धन्यवाद|

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  6. तू ख़िज़ां की मुरीद इसलिये अब,
    मैं भी क़त्ले-बहार कर रहा हूं।
    बहुत सुन्दर शेर

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  7. पटाली जी और सुनील जी का अभार।

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