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Saturday, 8 January 2011

हवा-ए-हुस्न सरकार की

तमहीद क्या लिखूं मेरे यार की,
वो इक दवा है दर्दे-बीमार की।

तेरी अदायें माशा अल्ला सनम,
तेरी बलायें मैंने स्वीकार की।

दरवेशी मैंने तुमसे ही पाई है,
मेरी जवानी तुमने दुशवार की।

दिल ये चराग़ों सा जले,मैंने जब
देखी, हवा-ए-हुस्न सरकार की।


लहरों से मेरा रिश्ता मजबूत है,
साहिल ने बदगुमानी हर बार की।

ना पाया हुस्न की नदी में सुकूं,
कश्ती की सांसें खुद ही मंझधार की।

मासूम मेरे कल्ब को देख कर,
फिर उसने तेज़, धारे-तलवार की।

ग़ुरबत में रहते थे सुकूं से, खड़ी
ज़र के लिये तुम्ही ने दीवार की।

परदेश में ज़माने से बैठा हूं,
है फ़िक्र दानी अपने दस्तार की।

11 comments:

  1. संजय भाई अच्छी अभिव्यक्ति मेरा मतलब उम्दा ग़ज़ल| खास कर काफियों का प्रयोग सीखने वालों के लिए बहुत ही उपयोगी लगा|
    तेज धार-ए-तलवार
    हवा-ए-हुस्न सरकार

    आपका नंबर मेरे पास है, इस विषय पर आगे बात करने की इच्छा है|

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  2. .

    लहरों से मेरा रिश्ता मजबूत है,
    साहिल ने बदगुमानी हर बार की।

    एक से बढ़कर एक उम्दा शेर,
    लाजवाब ग़ज़ल।

    .

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  3. लाजवाब ग़ज़ल। धन्यवाद|

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  4. लहरों से मेरा रिश्ता मजबूत है,
    साहिल ने बदगुमानी हर बार की।
    उम्दा शेर,

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  5. बेहद खूबसूरत शानदार गज़ल्।

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  6. लहरों से मेरा रिश्ता मजबूत है,
    साहिल ने बदगुमानी हर बार की।

    बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..

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  7. तमहीद क्या लिखूं मेरे यार की,
    वो इक दवा है दर्दे-बीमार की।
    khoobsurat :)

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  8. नवीन भाई , दीव्या जी , पटाली जी , सुनील कुमार जी, तुषार जी,
    वन्दना जी , कैलाश जी, रश्मी जी, सुरेन्द्र जी और मनोज कुमार जी आप सब का मैं शुक्रगुज़ार हूं ।

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