तमहीद क्या लिखूं मेरे यार की,
वो इक दवा है दर्दे-बीमार की।
तेरी अदायें माशा अल्ला सनम,
तेरी बलायें मैंने स्वीकार की।
दरवेशी मैंने तुमसे ही पाई है,
मेरी जवानी तुमने दुशवार की।
दिल ये चराग़ों सा जले,मैंने जब
देखी, हवा-ए-हुस्न सरकार की।
लहरों से मेरा रिश्ता मजबूत है,
साहिल ने बदगुमानी हर बार की।
ना पाया हुस्न की नदी में सुकूं,
कश्ती की सांसें खुद ही मंझधार की।
मासूम मेरे कल्ब को देख कर,
फिर उसने तेज़, धारे-तलवार की।
ग़ुरबत में रहते थे सुकूं से, खड़ी
ज़र के लिये तुम्ही ने दीवार की।
परदेश में ज़माने से बैठा हूं,
है फ़िक्र दानी अपने दस्तार की।
संजय भाई अच्छी अभिव्यक्ति मेरा मतलब उम्दा ग़ज़ल| खास कर काफियों का प्रयोग सीखने वालों के लिए बहुत ही उपयोगी लगा|
ReplyDeleteतेज धार-ए-तलवार
हवा-ए-हुस्न सरकार
आपका नंबर मेरे पास है, इस विषय पर आगे बात करने की इच्छा है|
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ReplyDeleteलहरों से मेरा रिश्ता मजबूत है,
साहिल ने बदगुमानी हर बार की।
एक से बढ़कर एक उम्दा शेर,
लाजवाब ग़ज़ल।
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लाजवाब ग़ज़ल। धन्यवाद|
ReplyDeleteलहरों से मेरा रिश्ता मजबूत है,
ReplyDeleteसाहिल ने बदगुमानी हर बार की।
उम्दा शेर,
dr.sanjay dani ji sundar ghazal badhai
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत शानदार गज़ल्।
ReplyDeleteलहरों से मेरा रिश्ता मजबूत है,
ReplyDeleteसाहिल ने बदगुमानी हर बार की।
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..
तमहीद क्या लिखूं मेरे यार की,
ReplyDeleteवो इक दवा है दर्दे-बीमार की।
khoobsurat :)
umda gazal.
ReplyDeletehar sher behtareen.
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteफ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (दूसरा भाग)
नवीन भाई , दीव्या जी , पटाली जी , सुनील कुमार जी, तुषार जी,
ReplyDeleteवन्दना जी , कैलाश जी, रश्मी जी, सुरेन्द्र जी और मनोज कुमार जी आप सब का मैं शुक्रगुज़ार हूं ।