मेरे दिल की खिड़कियां टूटी है हमदम,
फिर भी तेरे हुस्न का तूफ़ां है बरहम। ( बरहम-- अप्रसन्न)
आंसुओं से मैं वफ़ा के गीत लिखता,
बे-वफ़ाई तेरी आंखों की तबस्सुम।
मैं शराबी तो नहीं लेकिन करूं क्या,
दिल बहकता,देख तेरी ज़ुल्फ़ों का खम।
तुम हवस के छाते में गो गुल खिलाती,
सब्र से भीगा है मेरे दिल का मौसम।
साथ तेरे स्वर्ग की ख़्वाहिश थी मेरी,
अब ख़ुदा से मांगता हूं जहन्नुम।
हिज्र की लहरों से मेरी दोस्ती है,
वस्ल के साहिल का तू ना बरपा मातम।
मैं चराग़ों के मुहल्ले का सिपाही,
आंधियों से मुझको लड़ना है मुजस्सम। ( मुजस्सम--जिस्म सहित , आमने -सामने)
मेरे दिल में हौसलों की सीढियां हैं,
पर सफ़लता, भ्रष्ट लोगों के है शरणम।
मेरी ख़ुशियों का गला यूं घोटा दानी,
ईद के दिन भी मनाता हूं मुहर्रम।
संजय जी ! सुन्दर रचना .. उर्दू के शब्दों से बनी ये रचना सब कुछ कर जाने के बाद मंजिल मिसिंग का सीन खड़ा कर रही है..
ReplyDeleteमेरे दिल में हौसलों की सीढियां हैं,
पर सफ़लता, भ्रष्ट लोगों के है शरणम।,,, बेहद सुन्दर
नव वर्ष पर आपको और आपके परिवार के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाएं..
मेरी ख़ुशियों का गला यूं घोटा दानी,
ReplyDeleteईद के दिन भी मनाता हूं मुहर्रम। .....वाह...वाह.
बहुत अच्छी ग़ज़ल है।
नव वर्ष 2011 आपके एवं आपके परिवार के लिए सुखकर, समृद्धिशाली एवं मंगलकारी हो...
मैं शराबी तो नहीं लेकिन करूं क्या,
ReplyDeleteदिल बहकता,देख तेरी ज़ुल्फ़ों का खम ...
बहुत खूब संजय जी .... subhaan alla ... क्या शेर nikale हैं .. मज़ा आ गया ... इस शेर पर तो kurban ....
आपको और आपके समस्त परिवार को नव वर्ष मंगलमय हो ...
आदरणीय, लाज़वाब. एक से बढ़कर एक शे'र.
ReplyDelete-
सपरिवार आपको नव वर्ष की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं.
नव वर्ष २०११ और एक प्रार्थना
आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की अनंत मंगलकामनाएं
ReplyDeleteमेरे दिल में हौसलों की सीढियां हैं,
ReplyDeleteपर सफ़लता, भ्रष्ट लोगों के है शरणम।
मेरी ख़ुशियों का गला यूं घोटा दानी,
ईद के दिन भी मनाता हूं मुहर्रम।
वाह क्या शेर कहे। समाज का आईना है। बधाई आपको, इस लाजवाब गज़ल के लिये।।
आदरणीय नूतन जी , वर्षा जी, निर्मला जी, व आदरणीय नासवा जी , अमीत जी ,मुकेश अग्रवाल जी का आभार।
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