मौत से ये दिल रज़ा है,
और क़ातिल लापता है।
वो समंदर ,मैं किनारा,
उम्र भर का फ़ासला है।
मैं चरागों का मुहाफ़िज़,
वो हवाओं की ख़ुदा है।
सब्र की जंज़ीरें मुझको,
खुद हवस में मुब्तिला है।
सांसें कब की थम चुकी हैं,
ज़ख्मे दिल फिर भी हरा है।
बेवफ़ाई की ज़मीं पर,
शजरे दिल अब भी खड़ा है।
चैन भी वो ले गई है,
जिसको दिल मंने दिया है।
बोझ जीवन का उठाये,
इक ज़माना हो गया है।
प्यार की सरहद पे दानी,
इश्क़ ही क्यूं हारता है।
बहुत सुन्दर सार्थक रचना। धन्यवाद।
ReplyDeletethanks to patali-the- villege.
ReplyDeleteमौत से ये दिल रज़ा है,
ReplyDeleteऔर क़ातिल लापता है।
वो समंदर ,मैं किनारा,
उम्र भर का फ़ासला है।
मैं चरागों का मुहाफ़िज़,
वो हवाओं की ख़ुदा है।
ये खूबसूरत अश'आर दिल को छू गये.दाद कुबूल करें.
धन्यवाद अरूण भाई।
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