हम कैसे इस बात को मानें कहने को संसार कहे,
मुझको ये मंज़ूर तभी होगा जब मेरा यार कहे।
मैं एक सिपाही हूं ख़ामोश पसंद ज़ुबां है मेरी,
दिल की बात मुकम्मल, सरहद पे मेरी तलवार कहे।
बेजान किनारों को जीत अकड़ न दिखाओ, है हिम्मत,
तो फिर मुझसे हाथ लड़ाओ सागर की मंझधार कहे।
मेरी हद तंग करो ना, भाई भाई के झगड़े में
रोते रोते हमसे गमगीं पुरखों की दीवार कहे।
सिर्फ़ ख़ुदा के आगे झुकता हूं , मुझसे उम्मीद न रख,
शाह से ,एक नक़ीब फ़कीर की गैरत-ए-दस्तार कहे।
इक घर में रह कर भी बरसों आपस में मिल ना पायें,
दौलत की दुनिया इनको ही आज सफ़ल परिवार कहे।
बिन्तों से ही कुनबा बढता है और न मारो इनको, ( बिन्तों - पुत्रियों)
हर उपदेश कहे ,हर तहज़ीब कहे, हर संस्कार कहे।
भूख अशिक्षा व गरीबी के दम ख़ूब बुलंद रहेंगे,
मजबूर वतन से ,ग्यानी ज़रदारों की सरकार कहे।
लूट खसोट जमाखोरी से कस्त्र खड़ा करके दानी,
हम बेईमानों के वंशज, इसको भी व्यापार कहें।
Wednesday, 4 April 2012
Thursday, 23 February 2012
नया हूं अभी
मैं तेरे शह्र में बिलकुल नया नया हूं अभी,
तेरे वादों के हवालात में बंधा हूं अभी।
चराग़ों के लिये मंज़ूर है मुझे मरना,
मुकद्दर आंधियों के तेग पर रखा हूं अभी।
घिरी है बदज़नी से , हुस्न की गली गोया,
लुटाने इश्क़ के इमान को चला हूं अभी।
बहुत डरता हूं उजालों की बेख़ुदी से मैं,
तेरी यादों के अंधेरों में जा छिपा हूं अभी।
ख़ुदा के गांव से आया हुआ मुसाफ़िर हूं,
तुम्हारे हुस्न के चौपाल पर फ़िदा हूं अभी।
मुहब्बत में वफ़ा के बदले धोखा ही पाया,
मगर फिर भी वफ़ा का ज़ुल्म कर रहा हूं अभी।
समंदर से मेरा रिश्ता पुराना है दानी,
सितमगर साहिलों से डरने लगा हूं अभी।
तेरे वादों के हवालात में बंधा हूं अभी।
चराग़ों के लिये मंज़ूर है मुझे मरना,
मुकद्दर आंधियों के तेग पर रखा हूं अभी।
घिरी है बदज़नी से , हुस्न की गली गोया,
लुटाने इश्क़ के इमान को चला हूं अभी।
बहुत डरता हूं उजालों की बेख़ुदी से मैं,
तेरी यादों के अंधेरों में जा छिपा हूं अभी।
ख़ुदा के गांव से आया हुआ मुसाफ़िर हूं,
तुम्हारे हुस्न के चौपाल पर फ़िदा हूं अभी।
मुहब्बत में वफ़ा के बदले धोखा ही पाया,
मगर फिर भी वफ़ा का ज़ुल्म कर रहा हूं अभी।
समंदर से मेरा रिश्ता पुराना है दानी,
सितमगर साहिलों से डरने लगा हूं अभी।
Thursday, 2 February 2012
क़ातिल लापता है
मौत से ये दिल रज़ा है,
और क़ातिल लापता है।
वो समंदर ,मैं किनारा,
उम्र भर का फ़ासला है।
मैं चरागों का मुहाफ़िज़,
वो हवाओं की ख़ुदा है।
सब्र की जंज़ीरें मुझको,
खुद हवस में मुब्तिला है।
सांसें कब की थम चुकी हैं,
ज़ख्मे दिल फिर भी हरा है।
बेवफ़ाई की ज़मीं पर,
शजरे दिल अब भी खड़ा है।
चैन भी वो ले गई है,
जिसको दिल मंने दिया है।
बोझ जीवन का उठाये,
इक ज़माना हो गया है।
प्यार की सरहद पे दानी,
इश्क़ ही क्यूं हारता है।
और क़ातिल लापता है।
वो समंदर ,मैं किनारा,
उम्र भर का फ़ासला है।
मैं चरागों का मुहाफ़िज़,
वो हवाओं की ख़ुदा है।
सब्र की जंज़ीरें मुझको,
खुद हवस में मुब्तिला है।
सांसें कब की थम चुकी हैं,
ज़ख्मे दिल फिर भी हरा है।
बेवफ़ाई की ज़मीं पर,
शजरे दिल अब भी खड़ा है।
चैन भी वो ले गई है,
जिसको दिल मंने दिया है।
बोझ जीवन का उठाये,
इक ज़माना हो गया है।
प्यार की सरहद पे दानी,
इश्क़ ही क्यूं हारता है।
Thursday, 12 January 2012
वादों की कश्ती
वादों की कश्ती पर सवार है दिल,
हिज्र के ज़ुल्मों का शिकार है दिल्।
तुमसे मिल के करार पाऊंगा,
बस यही सोच बेकरार है दिल्।
तुमको देकर किनारों की खुशियां,
एक समंदर सा बेहिसार है दिल्।
तू थी तो बिन पिये नशा सा था,
तू गई जब से बेखुमार है दिल्।
तेरे खातिर बना के ताजमहल,
एक दरवेश का मज़ार है दिल्।
तू हवस के सफ़र की एक राही,
मंज़िले सब्र का ग़ुबार है दिल्।
तेरी ज़ुल्फ़ों के सर्द साये में,
एक भड़कता हुआ शरार है दिल्।
बेवफ़ाई की लह्रें भी मंज़ूर,
गो वफ़ा की तटों का यार है दिल्।
आज कल यूं ही दानी हंसता है,
वरना सदियों से अश्कबार है दिल
हिज्र के ज़ुल्मों का शिकार है दिल्।
तुमसे मिल के करार पाऊंगा,
बस यही सोच बेकरार है दिल्।
तुमको देकर किनारों की खुशियां,
एक समंदर सा बेहिसार है दिल्।
तू थी तो बिन पिये नशा सा था,
तू गई जब से बेखुमार है दिल्।
तेरे खातिर बना के ताजमहल,
एक दरवेश का मज़ार है दिल्।
तू हवस के सफ़र की एक राही,
मंज़िले सब्र का ग़ुबार है दिल्।
तेरी ज़ुल्फ़ों के सर्द साये में,
एक भड़कता हुआ शरार है दिल्।
बेवफ़ाई की लह्रें भी मंज़ूर,
गो वफ़ा की तटों का यार है दिल्।
आज कल यूं ही दानी हंसता है,
वरना सदियों से अश्कबार है दिल
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