www.apnivani.com ...

Sunday, 6 February 2011

पतंगों की जवानी

तू मेरे सूर्ख गुलशन को हरा कर दे ,
ज़मीं से आसमां का फ़ासला कर दे।

हवाओं के सितम से कौन डरता है ,
मेरे सर पे चरागों की ज़िया कर दे ।

या बचपन की मुहब्बत का सिला दे कुछ,
या इस दिल के फ़लक को कुछ बड़ा कर दे।

तसव्वुर में न आने का तू वादा कर ,
मेरी तनहाई के हक़ में दुआ कर दे।

पतंगे की जवानी पे रहम खा कुछ ,
तपिश को अपने मद्धम ज़रा कर दे ।

हराना है मुझे भी अब सिकन्दर को ,
तू पौरष सी शराफ़त कुछ अता कर दे।

मुझे मंज़ूर है ज़ुल्मो सितम तेरा ,
मुझे जो भी दे बस जलवा दिखा कर दे ।

तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब ,
मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।

शहादत पे सियासत हो वतन मे तो ,
शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।

यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को ,
यहीं तामीर काशी करबला कर दे।

भटकना गलियों में मुझको नहीं आता,
दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।


अता- देना ,लहद-क़ब्र, तसव्वुर-कल्पना ,फ़लक-गगन।, ज़िया-रौशनी

9 comments:

  1. Naye andaaj waale hain ye sher.
    शहादत पे सियासत हो वतन मे तो , शहीदों के लहद को गुमशुदा कर दे।

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब .... कमाल... वाह आपकी कलम तो गज़ब का कमाल करती है... सुन्दर

    ReplyDelete
  3. अच्छी रचना . आभार .

    ReplyDelete
  4. यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को ,
    यहीं तामीर काशी करबला कर दे।

    भटकना गलियों में मुझको नहीं आता,
    दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।

    बहुत खूबसूरत...हर शेर दाद के काबिल....

    ReplyDelete
  5. तेरे बिन कौन जीना चाहता है अब ,
    मेरी सांसों की थमने की दवा कर दे ।

    Beautiful couplets !

    .

    ReplyDelete
  6. हर शेर दाद के काबिल| बहुत खूबसूरत|

    आप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|

    ReplyDelete
  7. डॉ संजय ,
    आपकी रचनाएँ जितनी बार पढ़ती हूँ , और भी उम्दा लगती हैं । मन ही नहीं भरता ।
    पुनः पढ़ा । पुनः आभार।

    ReplyDelete
  8. यहीं जीना यहीं मरना है दोनों को ,
    यहीं तामीर काशी करबला कर दे।

    भटकना गलियों में मुझको नहीं आता,
    दिले-आशिक़ को दानी बावरा कर दे।

    क्या बात कही है.................
    अल्फाज बहुत सुन्दर हैं।


    डॉ. दिव्या श्रीवास्तव ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर किया पौधारोपण
    डॉ. दिव्या श्रीवास्तव जी ने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर तुलसी एवं गुलाब का रोपण किया है। उनका यह महत्त्वपूर्ण योगदान उनके प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता, जागरूकता एवं समर्पण को दर्शाता है। वे एक सक्रिय ब्लॉग लेखिका, एक डॉक्टर, के साथ- साथ प्रकृति-संरक्षण के पुनीत कार्य के प्रति भी समर्पित हैं।
    “वृक्षारोपण : एक कदम प्रकृति की ओर” एवं पूरे ब्लॉग परिवार की ओर से दिव्या जी एवं समीर जीको स्वाभिमान, सुख, शान्ति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के पञ्चामृत से पूरित मधुर एवं प्रेममय वैवाहिक जीवन के लिये हार्दिक शुभकामनायें।

    आप भी इस पावन कार्य में अपना सहयोग दें।


    http://vriksharopan.blogspot.com/2011/02/blog-post.html

    ReplyDelete
  9. सुलभ जी ,डा: नूतन जी , करूण जी, वीणा जी ,पटाली जी, दिव्या जी व म्रिदुला जी का बहुत बहुत आभार।

    ReplyDelete