भुरभुरा है दिल का गागर,
क्यूं रखेगा कोई सर पर।
हिज्र का दीया जलाऊं,
वस्ल के तूफ़ां से लड़ कर।
उनकी आंखों के दो साग़र,
ग़म बढाते हैं छलक कर।
जब से तुमको देखा हमदम,
थम गया है दिल का लश्कर।
भंवरों का घर मत उजाड़ो,
फूल, बन जायेंगे पत्थर।
झूठ का आकाश बेशक,
जल्द ढह जाता ज़मीं पर।
ग़म, किनारों का मुहाफ़िज़
सुख का सागर दिल के भीतर।
न्याय क़ातिल की गिरह में,
फ़ांसी पे मक़्तूल का सर।
आशिक़ी मांगे फ़कीरी,
दानी भी भटकेगा दर-दर।
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ReplyDeleteग़म, किनारों का मुहाफ़िज़
सुख का सागर दिल के भीतर...
बेहतरीन अभिव्यक्ति !
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ग़म, किनारों का मुहाफ़िज़
ReplyDeleteसुख का सागर दिल के भीतर।
sher kubsurat mubarak ho
नूतन वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं ...
झूठ का आकाश बेशक,
ReplyDeleteजल्द ढह जाता है ज़मीं पर।
***वाह!बहुत उम्दा बात कही आप ने.
हिज्र का दीया जलाऊं,
वस्ल के तूफ़ां से लड़ कर।
-बहुत खूब!
बहुत अच्छा लिखते हैं आप.
****नए साल २०११ की हार्दिक शुभकामनाएँ ****
[कृपया ग़ज़ल के शीर्षक में 'गागार 'को गागर कर लिजीये.]
सुन्दर कविता.....
ReplyDeleteनव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !
ज़ील जी ,सुनील जी , अल्पना जी व डा:हरदीप जी का आभार व आप सबको नववर्ष की शुभकामनायें । ,
ReplyDeleteश्रीमान दानी जी,
ReplyDeleteव्यस्तताओं के चलते आपतक हर बार नहीं पहुँच पाता हूँ. लेकिन देर सबेर पढ़ जरुर लेता हूँ.
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
बेहतरीन रचना। बधाई। आपको भी नव वर्ष 2011 की अनेक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteग़म, किनारों का मुहाफ़िज़
ReplyDeleteसुख का सागर दिल के भीतर।
वाह - वा !!
बहुत अच्छी
और
गुनगुना लेने लाईक़ ग़ज़ल ....
मुबारकबाद
happy new year 2011
सुलभ जी , श्रीमती वर्षा जी व दानिश जी का आभार व नववर्ष की शुभकामनायें
ReplyDeleteनये वर्ष की अनन्त-असीम शुभकामनाएं.
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