www.apnivani.com ...

Wednesday 1 December 2010

क्या भरोसा ज़िन्दगी का

क्या भरोसा ज़िदगी का
वक़्त की नाराज़गी का।

इश्क़ के बादल भटकते
दे पता अपनी गली का।

हुस्न की लहरों से बचना
ये समंदर है बदी का।

फूलों को समझाना आसां
ना-समझ है दिल कली का।

आंधी सी वो आई घर में
थम चुका है कांटा घड़ी का।

दौड़ने से क्या मिलेगा
ये सफ़र है तश्नगी का।

बन्धनों से मुक्त है जो
मैं किनारा उस नदी का।

चांद के सर पे है बैठी
क्या मज़ा है चांदनी का।

ग़म खड़ा है मेरे दर पे
क्या ठिकाना अब ख़ुशी का।

बेच खाया दानी का घर
ये सिला है दोस्ती का।

2 comments:

  1. .

    दौड़ने से क्या मिलेगा
    ये सफ़र है तश्नगी का..

    Beautiful couplets. Quite close to reality.

    .

    ReplyDelete
  2. फूलों को समझाना आसाँ
    नासमझ है दिल काली का


    बहुत खूब संजय भाई

    ReplyDelete