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Saturday 2 October 2010

न्याय की छत

दिल के घर में हर तरफ़ दीवार है,
जो अहम के कीलों से गुलज़ार है।

तौल कर रिश्ते निभाये जाते यहां,
घर के कोने कोने में बाज़ार है।

अब सुकूं की कश्तियां मिलती नहीं,
बस हवस की बाहों में पतवार है।

ख़ून से लबरेज़ है आंगन का मन,
जंगे-सरहद घर में गो साकार है।

थम चुके विश्वास के पखें यहां,
धोखेबाज़ी आंखों का ष्रिंगार है।

ज़ुल्म के तूफ़ानों से कमरा भरा,
सिसकियां ही ख़ुशियों का आधार है।

हंस रहा है लालची बैठका का फ़र्श,
कुर्सियों की सोच में हथियार है।

मुल्क का फ़ानूस गिरने वाला है,
हां सियासत की फ़िज़ा गद्दार है।

सर के बालों की चमक बढने लगी,
पेट की थाली में भ्रष्टाचार है।

न्याय की छत की छड़ें जर्जर हुईं,
चंद सिक्कों पे टिका संसार है।

टूटी हैं दानी मदद की खिड़कियां,
दरे-दिल को आंसुओं से प्यार है।

3 comments:

  1. दिल के घर में हर तरफ़ दीवार है,
    जो अहम के कीलों से गुलज़ार है।
    wah bahut khoob...

    हंस रहा है लालची बैठका का फ़र्श,
    कुर्सियों की सोच में हथियार है।
    behtreen...

    मुल्क का फ़ानूस गिरने वाला है,
    हां सियासत की फ़िज़ा गद्दार है।
    wah ...

    bahut hi achhi rachna sanjay ji ....
    badhai sweekarein ....

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  2. aapne mere blog par darshan diye uske liya shukriya ... aapne dadi nani ki zulfon ki baat kahi ... bahut achha laga ... unki khud ki zulfon mein beshumaar kahaaniya thi jo unke naati poton ki kalpanaon ko par laga detin thi to main kis laayak ki unki kahani bayaan karun ... aaj ki nuclear families mein pale bade bachhe in kahaniyon se vanchit hain ...agar aapko kuch dant kathaien ya aisi kahaniyaan yaad ho to zaroor ek bolg shuru kariyega ...

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  3. अशोक बजाज जी व chitijaa ji ko ब्लाग में पधारने व टिप्पणियों के लिये बहुत बहुत धन्यवाद।

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