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Saturday 14 August 2010

उजड़ा नगर

मुझपे फिर उनकी, दुवाओं का असर है,
मेरा दिल फिर आज उजड़ा नगर है।

नौकरी परदेश में गो कर रहा पर ,
यादों के दरिया में डूबा मेरा घर है।

गंगा भ्रष्टाचार की बहने लगी है,
इसलिये महंगाई का सर भी उपर है।

तुम सख़ावत की सियासत सीखना मत,
ये अमीरों की डकैती का हुनर है।

राम का नाम जपते हैं सदा पर,
रावणी क्रित्यों से थोड़ा भी न डर है।

झोपड़ी कालोनी में तन्हा है जबसे,
बिल्डरों की उसपे लालच की नज़र है।

ग़म चराग़े दिल का बढ्ता जा रहा है,
बेरहम मन में तसल्ली अब सिफ़र है।

देख मेरे इश्क़ का उतरा चेहरा,
आंसुओं से आईना ख़ुद तर-ब-तर है।

ख़्वाबों में भी सोचो मत उन्नति वतन की,
मच्छरों को मारना ही उम्र भर है।

प्यार है भैसों से नेता आफ़िसर को,
खातिरे इंसां , व्यवस्था अब लचर है।

बेवफ़ाई हावी है दानी वफ़ा पर,
इक ज़माने से यही ताज़ा ख़बर है
Posted by ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι at 10:21 PM

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