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Saturday 31 July 2010

वस्ल की ज़मीन

इस दिल के दर के पास उन्हीं के निशान है,
पर वस्ल की ज़मीन से वो बद-गुमान है।
मेरी वफ़ा के आसमां को उनसे इश्क़ है,
लेकिन हवस के फ़र्श पर उनकी अजान है।
मैं कसमों का ज़ख़ीरा रखा हूं सहेज कर,
पर उनकी वादा बेचने की सौ दुकान है।
सारा जहां झुका चुका हूं हौसलों के दम,
ज़ेहन में उनके बुजदिली का आसमान है।
जर्जर ये कश्ती सात समन्दर की राह पर,
अब लहरों का सलीब मेरा पासबान है।
कल्पना राम- राज्य की साकार होगी अब,
कुछ रावणों के हाथों वतन की कमान है।
जबसे सियासी ज़ुल्म बढा मुल्के-गांधी में,
हथियारों की दलाली , मेरा वर्तमान है।
मक़्तूल के लहद को उजाड़ा गया है, न्याय
फिर क़ातिलों के हाथों बिका बाग़बान है।
लूटो-ख़सोटो और निकल जाओ चुपके से,
दानी जदीद शिक्छा प्रणाली का ग्यान है।

वस्ल-- मिलन। पासबान- रक्छक। लहद-कब्र। जदीद- न

2 comments:

  1. यूँ तो हर शेर खूबसूरत है लेकिन मेरा पसन्दीदा शेर यह है
    मक़्तूल के लहद को उजाड़ा गया है, न्याय
    फिर क़ातिलों के हाथों बिका बाग़बान है।

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  2. शरद भाई आपकी मुसलसल टिप्पणीयों के लिये
    many many thanks.

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