दर्द के दरिया से दिल की उलफ़त हुई
यादों की कश्तियों में तबीयत चली।
बेबसी के सफ़र का मुसाफ़िर हूं मैं,
हुस्न के कारवां की इनायत यही।
मैं ज़मानत चरागों की लेता रहा,
आंधियों की अदालत ने तेरी सुनी।
दिल, ग़मों के कहानी का किरदार है,
हुस्न के मंच पर मेरी मैय्यत सजी।
है मदद की छतों पर मेरी सल्तनत,
तू ज़मीने-सितम की रियासत रही।
अपने घर में जहन्नुम भुगतता रहा,
सरहदे-इश्क़ में मुझे ज़न्नत मिली।
बदज़नी से मेरा रिश्ता बरसों रहा,
तेरी गलियों में सर पे शराफ़त चढी ।
मैं किताबे-वफ़ा का ग़ुनहगार हूं,
बेवफ़ाई तुम्हारी शरीयत बनी।
प्यार की कश्ती सागर की जानिब चली,
तेरे वादों के साहिल की दहशत बड़ी।
दिल ये, दानी का मजबूत था हमनशीं,
जब से तुमसे मिला हूं नज़ाकत बढी।
प्यार की कश्ती सागर की जानिब चली,
ReplyDeleteतेरे वादों के साहिल की दहशत बड़ी।
khubsurat sher mubarak ho
दिल ये, दानी का मजबूत था हमनशीं,
ReplyDeleteजब से तुमसे मिला हूं नज़ाकत बढी।
Beautiful !
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है मदद की छतों पर मेरी सल्तनत,
ReplyDeleteतू ज़मीने-सितम की रियासत रही।
बेहतरीन, वाह वाह, बहुत खूब संजय भाई|
सुनील जी , ज़ील जी और नवीन भाई आप सबका शत शत आभार ।
ReplyDeleteजबाब नहीं निसंदेह ।
ReplyDeleteयह एक प्रसंशनीय प्रस्तुति है ।
धन्यवाद । ।
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