दोस्तों ने कर दिया बरबाद घर
दुश्मनों से अब नहीं लगता है डर।
कब मिलेगी मन्ज़िलों की दीद, कब
ख़त्म होगा तेरे वादों का सफ़र।
जिसके कारण मुझको दरवेशी मिली
है इनायत उसकी सारे शहर पर।
आशिक़ी क्या होती है क्या जानो तुम
क़ब्र में भी रहता है दिल मुन्तज़र।
छोड़ दूं मयख़ाने जाना गर तू, रख
दे अधर पे मेरे, अपने दो अधर।
कश्ती-ए- दिल है समन्दर का ग़ुलाम
लग नहीं जाये किनारों की नज़र।
हौसलों से मैं झुकाऊंगा फ़लक
क्या हुआ कट भी गये गर बालो-पर।
छोड़ कर मुझको गई है जब से तू
है नहीं इस दिल को अपनी भी ख़बर।
है चरागों सा मुकद्दर मेरा भी
दानी भी जलता है तन्हा रात भर।
मुन्तज़र -- इन्तज़ार में। फ़लक - आसमां
बालो-पर- बाल और पंख
bahut khub.
ReplyDeleteफाइलातुन फाइलातुन फाइलुन - वज्ञ पर बेहतरीन ग़ज़ल है ये संजय भाई|
ReplyDeleteमुस्कान व नवीन भाई को बहुत बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteनवीन भाई 3रे व चौथे पंक्तिमें शब्दों का संयोजन आगे पीछे
हो गया था जिसे मैंने सुधार लिया है, ये बहर, बहरे रमल का मुरक्कब बहर है, अधिकांश मुरक्कब बहर में अंत में एक लघु (1)ज़रूरत के अनुसार बढाने का स्थापित नियम है। 212 को2121 किया जा सकता है। मेरी एक पंक्ति में "ग़ुलाम" आया है वो इसी नियम से संबद्ध है।
दोस्तों ने कर दिया बरबाद घर
ReplyDeleteदुश्मनों से अब नहीं लगता है डर...
एक वक़्त आता है जब दोस्तों और दुश्मनों का फर्क मिट जाता है।
बेहतरीन ग़ज़ल।
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संजय भाई आपकी सदाशायता को नमन| ग़ज़ल की बहरें, 'मात्रिक' होने के कारण, गुरु - लघु के विधान से ज़्यादा बँधी होती नहीं हैं, सही कहा है आपने| अब इसे पढ़ने में पहले के बनिस्बत ज़्यादा लुत्फ़ हासिल हुआ| आभार|
ReplyDeleteकश्ती-ए- दिल है समन्दर का ग़ुलाम
ReplyDeleteलग नहीं जाये किनारों की नज़र ...
मात्राए तो अपनी जगह हैं ... पर ग़ज़ल की कहन और भाव भी बहुत कमाल हैं ... कहीकत से जुड़े कुछ शेर लाजवाब हैं ...
ज़ील जी और नासवा जी का आभार।
ReplyDeleteनवीन भाई पता नहीं आपने मेरे ज़वाब का क्या मतलब निकाला , इस ग़ज़ल की बंदिश वही है जो आपने कोट किया है। ( 2122 2122 212) मेरी ग़ज़ल लेखनी स्थापित बहर् के अन्दर ही होती है , मैं चाह कर भी बहर से बाहर जा ही नहीं सकता ।
धन्यवाद।
वाह! पहला ही शे'र बड़ा मजे का लगा वाकी सब उम्दा. दिल से कहूँ थोड़ी सी और नजाकत है 'इक क्लास' मे रखने के लिए!
ReplyDeleteजारी रहें.
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पंख, आबिदा और खुदा के लिए
अमीत सागर जी का आभार।
ReplyDeleteदोस्तों ने कर दिया बरबाद घर
ReplyDeleteदुश्मनों से अब नहीं लगता है डर।
वाह क्या बात कही है.....
जब दोस्त ही दुश्मनों जैसा काम करें तो ????
डा: हरदीप संधु जी का शुक्रिया।
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