सोच के दीप जला कर देखो,
ज़ुल्म का मुल्क ढ्हा कर देखो।
दिल के दर पे फ़िसलन है गर,
हिर्स की काई हटा कर देखो।
साहिल पे सुकूं से रहना गर,
लहरों को अपना कर देखो।
ग़म के बादल जब भी छायें,
सब्र का जाम उठा कर देखो।
ईमान ख़ुदाई नेमत है,
हक़ पर जान लुटा कर देखो।
डर का कस्त्र ढहाना है गर,
माथ पे ख़ून लगा कर देखो।
आग मुहब्बत की ना बुझती,
हीर की कब्र खुदा कर देखो।
वस्ल का शीश कभी न झुकेगा,
हिज्र को ईश बना कर देखो।
डोर मदद की हर घर में है,
हाथों को फैला कर देखो।
हुस्न का दंभ घटेगा दानी,
इश्क़ का फ़र्ज़ निभा कर देखो।
बहुत खूब कहा है दानी जी आपने । डोर मदद की हर घर में है,
ReplyDeleteहाथों को फैला कर देखो । सोच के दीप जला कर देखो,
ज़ुल्म का मुल्क ढ्हा कर देखो।
वाह .. ग़ज़ब ke शेर है ... वैसे पूरी ग़ज़ल अलग सा मज़ा देती है ...
ReplyDeleteग़म के बादल जब भी छायें,
ReplyDeleteसब्र का जाम उठा कर देखो।
har sher men sandesh hai dakter saheb aapki soch ko aur aapko mubarak ho
डोर मदद की हर घर में है,
ReplyDeleteहाथों को फैला कर देखो।
बहुत खूब.
एक-एक पंक्ति लाजवाब है ।
ReplyDeleteग़म के बादल जब भी छायें,
ReplyDeleteसब्र का जाम उठा कर देखो।
... bahut khoob ... behatreen gajal !!!
आप सबका मैं तहे दिल शुक्र्गुज़ार हूं ।
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ग़ज़ल है ।
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