शौक के बादल घने हैं
दिल के ज़र्रे अनमने हैं।
दीन का तालाब उथला
ज़ुल्म के दरिया चढ़े हैं।
अब मुहब्बत की गली में
घर,हवस के बन रहे हैं।
मुल्क ख़तरों से घिरा है
क़ौमी छाते तन चुके हैं।
बेवफ़ाई खेल उनका
हम वफ़ा के झुनझुने हैं।
ख़ौफ़ बारिश का किसे हो
शहर वाले बेवड़े हैं।
चार बातें क्या की उनसे
लोग क्या क्या सोचते हैं।
हम ग़रीबों की नदी हैं
वे अमीरों के घड़े हैं।
लहरों पे सुख की ज़ीनत
ग़म किनारों पे खड़े हैं।
रोल जग में" दानी" का क्या
वंश का रथ खींचते हैं।
अब मुहब्बत की गली में
ReplyDeleteघर,हवस के बन रहे हैं।
bahut khubsurat kya bat hai
... bahut sundar ... behatreen !!!
ReplyDeleteसुनील भाई व उदय जी का शुक्रिया कि आप की नज़रे-इनायत हम पर भी हुईं, सामान्यत: मैं हर शनिवार की रात को इक नई ग़ज़ल पोस्ट करता हूं , समय निकाल कर गाहे-ब-गाहे यूं ही दर्शन देते रहें तो ख़ुशी होगी , आपके ब्लाग का दीदार करना मेरा भी कर्तव्य है जिसे मैं भी मुकम्मल तौर से निभाता रहूंगा।
ReplyDeleteदानी साहब
ReplyDeleteबड़ी मज़े की ग़ज़ल है क्या खूब कहा है
शौक के बादल घने हैं
दिल के ज़र्रे अनमने हैं।
और
दीन का तालाब उथला
ज़ुल्म के दरिया चढ़े हैं।
बहुत उम्दा शेर
इस शेर के तो क्या कहने..........
बेवफ़ाई खेल उनका
हम वफ़ा के झुनझुने हैं।
बहुत प्यारी नज्में पेश की हैं....
ReplyDeleteदेर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ......
जब भी ....
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुंडेर पर
बैठता है ....
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही ....
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाये .....!!
hum wafa ke jhunjhune hain
ReplyDeletebewafai khel unka ....kya baat hai sir tussi kamal kitta ....
ek shffaq kaanch ka dariya
jab khanak jaata hai kinaron se
der tak gunjta hai kaano main ....
bas waise hi aap ki ye gazal der tak duhraunga
sumati
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ReplyDeleteलहरों पे सुख की ज़ीनत
ग़म किनारों पे खड़े हैं।
Lovely couplets !
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हुज़ूर...!
ReplyDeleteएक सुन्दर ग़ज़ल है यह!
सुमीता साहेब, जितेन्द्र साहब। एसड़ीम। सहेब और ज़िल साहिबा को बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteख़ौफ़ बारिश का किसे हो
ReplyDeleteशहर वाले बेवड़े हैं। ...
छोटी बहर की लाजवाब ग़ज़ल ... बेवडे का प्रयोग जोरदार रहा ...
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बहुत सुन्दर ग़ज़ल!
ReplyDelete--
अच्छे बिम्बों का प्रयोग किया गया है!