नींव बिन जो हवाओं में खड़ा है
मेरी ग़ुरबत के मकां का हौसला है।
टूटे हैं इमदाद के दरवाज़े लेकिन
मेहनत का साफ़, इक पर्दा लगा है।
सीढियों पर शौक की काई जमी है
छत पे यारो सब्र का तकिया रखा है।
आंसुओं से भीगी दीवारे -रसोई
पर शिकम के खेत में, सूखा पड़ा है।
बेटी की शादी के खातिर धन नहीं है
इसलिये अब बेटी ही, बेटा बना है।
सुख से सदियों से अदावत है हमारी
ग़म ही अब हम लोगों का सच्चा ख़ुदा है।
सैकड़ों महलों को गो हमने बनाया
पर हमारा घर, ज़मीनें ढूंढ्ता है।
बंद हैं अब हुस्न की घड़ियां शयन में
इश्क़ के बिस्तर का चादर फ़टा है।
हां अंधेरा पसरा है आंगन के सर पे
रौशनी का ज़ुल्म, दानी से ख़फ़ा है।
बेटी ही बेटा बना है..........संजय भाई बहुतायत में मध्यम वर्गीय परिवारों की हक़ीकत पर कहा है आपने| kabhi hamare blog par bhi padhariyega http://thalebaithe.blogspot.com
ReplyDeleteबेटी की शादी के खातिर धन नहीं है
ReplyDeleteइसलिये अब बेटी ही, बेटा बना है।
संजय जी क्या बात कही आपने.. ऐसी हकीकत से जी घबराता है... बेहद जबरदस्त.. बहुत सुन्दर..
नवीन जी और डा: नूतन जी आपके कमेन्ट्स मेरी अमानत हैं , शुक्रिया ।
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