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Saturday 12 June 2010

तशनगी

रात भर बेबसी सी होती है , सुबह फ़िर तशनगी सी होती है।
फ़ूलों में खुशबू अब नहीं होते ,धूप मे भी नमी सी होती है।
अपनी खुशियां सुकूं नहीं देती , तेरे ग़म से खुशी सी होती है ।
मैं शराबी नहीं मगर तुझको , देखकर मयकशी सी होती है ।
मुल्क में बहरों की सियासत है ,हर सदा अनसुनी सी होती है।
पानियों का मुहाल है रुकना , ज़िन्दगी भी नदी सी होती है।
सामने हुस्न जब भी आती है , कल्ब में खलबली सी होती है।
गर जलावो मशाले ग़म त्तो ही, बा-अदब शाइरी सी होती है।
बंद इक राह तो खुलेगी नई , मौत भी ज़िन्दगी सी होती है।
सरहदों के सवाल पर दानी , क्यूं नसें बावरी सी होती हैं ।

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